विटामीन

                                          विटामीन



विटामीन (vitamin) या जीवन सत्व भोजन के अवयव हैं जिनकी सभी जीवों को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक रूप से ये कार्बनिक यौगिक होते हैं। उस यौगिक को विटामिन कहा जाता है जो शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किया जा सकता बल्कि भोजन के रूप में लेना आवश्यक है।

विटामिन 13  प्रकार का होता हे -:

1 . विटामिन ए 

2. विटामिन बी-1 

3.  विटामिन बी-2 

4 . विटामिन बी-3 

5 .  विटामिन बी-5 

6.  विटामिन बी-6 

7.  विटामिन बी-7 

8 .  विटामिन बी-9 

9.   विटामिन बी-12 

10.  विटामिन बी-c 

11 .  विटामिन बी-d 

12.  विटामिन बी-e 

13 .  विटामिन बी-k 


विटामिन- ए (रेटीनॉल)

विटामिन-ए का आविष्कार 1931 में हुआ था और विटामिन-ए जल में घुलनशील है।

  1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को करीब 1333 आइ यु या 400 माईक्रोग्राम

2. 6 से 12 महीने के उम्र के शिशु को करीब 1666 आइ यु या 500 माईक्रोग्राम

3. 1 से 3 साल के बच्चे को करीब 1000 आइ यु या 300 माईक्रोग्राम

4. 4 से 8 साल के बच्चे को करीब 1333 आइ यु या 400 माईक्रोग्राम

5. 9 से 13 साल के बच्चे को करीब 2000 आइ यु या 600 माईक्रोग्राम

6. 14 से 30 साल के पुरुष को करीब 3000 आइ यु या 900 माईक्रोग्राम

7. 14 से 30 साल के महिला को करीब 2333 आइ यु या 700 माईक्रोग्राम

8. गर्भ के दौरान करीब 2500 आइ यु या 750 माईक्रोग्राम

9. स्तनपान के दौरान करीब 4000 आइ यु या 1200 माईक्रोग्राम

यह  आँखों के लिए , स्किन के लिए , इम्यून सिस्टम के लिए , हड्डियों के लिए तथा हार्ट , फेफड़े और गुर्दों के सुचारू ढंग से काम करने के लिए जरुरी होता है।

1. कमजोर दांत

2. थकान

3. सूखे बाल

4. सुखी त्वचा

5. साइनस

6. क्रोनिक डायरिया

7. निमोनिया

8. सर्दी – जुखाम

9. वजन में कमी

10. नींद ना आना

11. नाईट ब्लाइंडनेस (रतौंधी)

यह गाजर, पालक, ब्रोकली, अंडे, हरी पत्तेदार सब्जियां, मीट, दूध, पनीर, कद्दू, पपीता, आम, मछली, क्रीम आदि चीजों में ज्यादा पाया जाता हैं। यह याद रखे की नारंगी और पीले रंग वाले फल और सब्जियों में विटामिन ए सबसे अधिक होता हैं।


       विटामिन- बी-1(थायमिन)


विटामिन बी-1 एक विटामिन है। और बी1 का वैज्ञानिक नाम थायमिन-हाइड्रोक्लोराइड है।

1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को 0.2 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

2. 9 से 13 साल के बच्चे को 0.9 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

3. 14 से 18 साल के पुरुष को 1.2 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

4. 14 से 18 साल की महिला को 1.0 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

5. 19 से 50 साल के पुरुष को 1.2 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

6. 19 से 50 साल की महिला को 1.2 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

7. गर्भवती महिला को 1.4 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए और स्तनपान कराने वाली महिला को 1.4 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

पाचन तंत्र के लिए , ह्रदय के लिए जरुरी है 

शरीर में विटामिन बी की कमी से थकान, एनीमिया, डिप्रेशन, भूख न लगने जैसे प्रॉब्लम हो सकते हैं। साथ ही शरीर में इस विटामिन की कमी से मसल्स में दर्द, बालों का झड़ना और एक्जिमा जैसी बिमारियां भी हो जाती हैं।

विटामिन बी आपको नॉन-वेजीटेरियन भोजन, डेरी उत्पाद, सूखे मेवे, अंकुरित अनाज, अंडे के पीले हिस्से, साबूत अनाज, पालक, फल्लीयां आदि में भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं।

विटामिन- बी-2(राइबोफ्लेविन)

राइबोफ्लेविन एक महत्वपूर्ण विटामिन है यह एक रूप में कार्य करता है एंटीऑक्सीडेंट शरीर के भीतर। विटामिन- बी2 स्वस्थ रक्त-कोशिकाओं को बनाए रखने, को बढ़ावा देने के लिए मदद करने के लिए जिम्मेदार है विटामिन बी2 को विटामिन जी भी कहा जाता है।

1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को 0.3 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

2. 9 से 13 साल के बच्चे को 0.9 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

3. 14 से 18 साल के पुरुष को 1.3 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

4. 14 से 18 साल की महिला को 1.0 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

5. 19 से 50 साल के पुरुष को 1.3 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

7. 19 से 50 साल की महिला को 1.3 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

8. गर्भवती महिला को 1.4 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए और स्तनपान कराने वाली महिला को 1.6 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

रेड ब्लड-सेल्स के लिए , याददाश्त , आँखों के लिए , त्वचा के लिए , ताकत के लिए जरुरी है।

1. होंठों के किनारे फट जाना।

2. जीभ का रंग लाल होना, छाले निकलना, जीभ का सूज जाना।

3. नाक का पकना व सूजना।

4. आंख में जलन व सूजन, धुंधलापन होना।

5.कान के पीछे खुजली होना।

6. योनि की खुजली।

चीज़ , बादाम , अंडा , मशरूम , सोयाबीन, दही , फूलगोभी आदि से मिलता है।


       विटामिन- बी-3(नियासिन)

विटामिन बी-3 के कई नाम है। यह मानव शरीर के लिए जरूरी विटामिन में से एक है। नियासिन या विटामिन- बी-3 का सबसे महत्वपूर्ण लाभ कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और उन्हें नियंत्रित करने की क्षमता है।


1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को 2 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

2. 9 से 13 साल के बच्चे को 0.9 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

3. 14 से 18 साल के पुरुष को 16 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

4. 14 से 18 साल की महिला को 14 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

5. 19 से 50 साल के पुरुष को 16 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

6. 19 से 50 साल की महिला को 14 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

7. गर्भवती महिला को 18 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए और स्तनपान कराने वाली महिला को 17 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

लीवर के लिए , शरीर में टोक्सिन कम करने के लिए , सिर दर्द व कोलेस्ट्रोल ठीक करने के लिए आवश्यक होता है।

इसकी कमी से पेलेग्रा pellagra, चिड़चिड़ापन irritability, भूख low appetite, भ्रम confusion, चक्कर आना dizziness और कमजोरी आदि लक्षण प्रकट होता हैं।

विटामिन बी3 के स्रोत मूंगफली, चिकन, फिश, सूरजमुखी के बीज और मशरूम है। इसके अलावा आप ब्राउन चावल, साबुत अनाज, ट्यूना, स्वोर्डफ़िश, लाल शिमला मिर्च का सेवन करके विटामिन बी3 का फायदा ले सकते हैं। लेकिन यह ध्यान रखिए कि आप इन स्रोतों में से किसी भी चीज का ज्यादा सेवन न करें।

विटामिन- बी-5 (पैंटोथीनिक एसिड)

विटामिन बी-5 को चिकित्सकीय भाषा में पैंटोथैनिक एसिड के नाम से जाना जाता है। यह अन्य विटामिन बी की ही तरह पानी में घुलनशील है। विटामिन बी5 हमारी ऊर्जा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को 1.7 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

2. 9 से 13 साल के बच्चे को 4 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

3. 14 से 18 साल के पुरुष को 5 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

4. 14 से 18 साल की महिला को 5 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

5. 19 से 50 साल के पुरुष को 5 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

6. 19 से 50 साल की महिला को 5 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

7. गर्भवती महिला को 6 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए और स्तनपान कराने वाली महिला को 7 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

पैंटोथीनिक एसिड, फैटी एसिड के चयापचय में सह एंजाइम के रूप में कार्य करता है co-enzyme in fatty acid metabolism । यह वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के टूटने में मदद करता है। यह हार्मोन और RBCs के गठन में भी शामिल है। B5 तनाव को कम करने में मददगार है।

इसकी कमी से थकान, नींद में गड़बड़ी, ख़राब समन्वय impaired coordination, भूख, थकान और अनिद्रा, कब्ज, मतली और उल्टी के आदि हो सकते है।

प्रत्येक खाद्य वस्तु में विटामिन B5 की कुछ मात्रा पायी जाती है। इसके अच्छे खाद्य स्रोत में शामिल है जिगर, मांस, दूध, फलियाँ, अंडे, खमीर, मूँगफली, साबुत अनाज और फलियां।

विटामिन- बी-6 (पाईरीडाक्सिन)

विटामिन बी-6 को पायरीडॉक्सिन के नाम से भी जाना जाता हैं विटामिन बी6 का रंग सफेद होता है। यह गंधरहित क्रिस्टल अर्थात् कणों वाला पाउडर होता है।

1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को 0.1 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

2. 9 से 13 साल के बच्चे को 1.0 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

3. 14 से 18 साल के पुरुष को 5 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

4. 14 से 18 साल की महिला को 1.3 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

5. 19 से 50 साल के पुरुष को 1.2 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

6. 19 से 50 साल की महिला को 5 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

7. गर्भवती महिला को 1.9 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए और स्तनपान कराने वाली महिला को 2.0 मिलीग्राम के करीब लेना चाहिए।

बायोटिन, शरीर में कार्बोहाइड्रेट, वसा और अमीनो एसिड के चयापचय/मेटाबोलिज्म में सहायता करता है। यह भ्रूण के सामान्य विकास के लिए अत्यंत ज़रूरी है। यह बालों और नाखूनों को मजबूत बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

शरीर में बायोटिन की कमी डायबिटीज/मधुमेह को गंभीर बना सकती है। ऐसा इसलिए होता है की बायोटिन ग्लूकोज के चयापचय में कई तरह से जुड़ा होता है। इसकी कमी से ग्लूकोज़ का सही से मेटाबोलिज्म नहीं हो पाता और यह ज्यादा मात्रा में खून में मौजूद रहता है।


1. यह शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन में पाया जाता है। कुछ में यह फ्री और कुछ में संयुक्त अवस्था में मिलता है। फ्री स्टेट में यह फल, सब्जियों, दूध में मिलता है। आंत में पाए जाने वाले बैक्टीरिया भी बायोटिन बनाते हैं।

2. बायोटिन पकाये अंडो, विशेष रूप से अंडे की जर्दी तथा लीवर, मीट, सूखे मेवे बादाम, मूंगफली, अखरोट, सोयाबीन, फलियां, साबुत अनाज, फूलगोभी, केले, मक्का, सोयाबीन,और मशरूम आदि में पाया जाता है।

3. मूंगफली, बादाम, अखरोट

4. सूखे मेवे, दालें

5. शकरकंद

6. चीज़, अंडे, किडनी, लीवर

7. सोयाबीन का आटा

8. गोभी, मशरूम

9. कम मात्रा में, ज्यादातर फल, रिफाइंड अनाज

10. टमाटर

विटामिन- बी-7 (बायोटिन)

विटामिन- बी-7 को बायोटिन भी कहा जाता है। यह विटामिन बी-काम्लेक्स परिवार का ही एक सदस्य है। 


बच्चे को:-

1. जन्म से 6 महीने: 5 mcg

2. 7-12 महीने: 6 mcg

3. 1-3 साल: 8 mcg

4.  4-8 साल: 12 mcg

5.  9-13 वर्ष: 20 mcg

6. 14-18 वर्ष: 25 mcg


वयस्क को:-

7. 19 साल तथा बड़े : 30 mcg

8. गर्भवती महिलाएं: 30 mcg

9. स्तनपान कराने वाली महिला: 35 mcg


ह्रदय , पाचन , इम्यून सिस्टम , मासपेशियों , नर्वस सिस्टम , दिमाग का विकास आदि के लिए महत्चपूर्ण।

1. बालों का झड़ना, गंजापन

2. बालों का रंग उड़ना

3.चेहरे पर लाल पपड़ीदार दाने

4. नाखूनों का टूटना, परतदार होना

5. नवजात शिशुओं में बालों में पपड़ीदार पैच, रूसी Cradle Cap

6. शिशु की आँख, माक, गाल पर रैशेज, डायपर रैशेज

7. सूखी पपड़ीदार त्वचा

8. होठों के कोने पर दरार पड़ना

9. मोटी, सूजी हुई मैजंटा रंग की जीभ

10. आँखों में सूखापन

11. भूख न लगना, टेस्ट न आना

12. थकान, कमजोरी नींद न आना

13. डिप्रेशन, भ्रम, (Hallucination)

14. बायोटिन का उपयोग कमज़ोर नाखून, तथा कुछ अन्य रोगों के उपचार में भी प्रयोग किया जाता है।


आलू , केला , मछली , अंडा , बादाम , काजू , पिस्ता , साबुत अनाज आदि में पाया जाता है। 

विटामिन- बी-9 

(फॉलिक एसिड) विटामिन बी-9 को फोलिक अम्ल या फोलासीन और फोलेट के नाम से भी जाना जाता है। ये विटामिन बी-9 के जल-घुल्य रूप हैं। फोलिक एसीड शरीर के विभिन्न कार्यों के संपादन के लिए आवश्यक हैं।


1. मां बनने की इच्छुक महिलाओं को प्रतिदिन 400 मिक्रोग्राम और गर्भवास्‍था की पहली तिमाही के दौरान प्रतिदिन 600 मिक्रोग्राम फोलिक एसिड के सेवन की सलाह दी जाती है। साथ ही उन्हें और फोलेट से परिपूर्ण आहार खाना चाहिए। ऐसा करने से जन्मदोष और गर्भपात होने का जोखिम कम हो जाता है।


2. मां बनने का मन बनाने से ही फोलिक एसिड लेना शुरू कर देना चाहिए। गर्भधारण करने से तीन महीने पहले फोलिक एसिड की खुराक को शुरू करना सबसे अच्छा है। अगर आप स्‍तनपान कराती हैं, तो आपको फोलिक एसिड 500 मिक्रोग्राम प्रतिदिन लेना चाहिये।

इसे फोलेट भी कहा जाता है। यह डीएनए संश्लेषण, विटामिन बी12 के साथ मिलकर लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और एमिनो-एसिड के चयापचय के लिए आवश्यक है। 


 यह गर्भ में पल रहे बच्चे के न्यूरल ट्यूब-दोष के जोखिम को कम करने में सहायक है। यह बच्चे की रीढ़ की हड्डी और नर्वस सिस्टम के गठन के लिए महत्वपूर्ण है।

 इसकी कमी से एनीमिया हो जाता है। इससे छोटे बच्चों में न्यूरोजिकल डिसॉर्डर की समस्या हो जाती है।

ब्रोकली, स्प्राउट्स, पालक, बीन्स, हरी पत्तेदार सब्जियां, मटर, चना, ब्राउन ब्रेड, दूध और दूध से बने पदार्थ, चुकंदर, खजूर आदि इसके अच्छे स्रोत हैं।

विटामिन- बी-12

 (क्यानोकोबलामिन) विटामिन बी-कॉम्पलेक्स के परिवार का एक सदस्य है। इसके प्रयोग से शरीर में रिक्ट्रेशिया की वृद्धि से रोग लग जाता है। इससे संक्रामक रोगों में बहुत लाभ होता है। टाइफस फीवर पैरा-एमिनो बेंजोइक एसिड से पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

1. जन्म से 6 महीने के उम्र के शिशु को 0.4 UG के करीब लेना चाहिए।

2. 9 से 13 साल के बच्चे को 1.8 UG के करीब लेना चाहिए।n3. 14 से 18 साल के पुरुष को 2.4 UG के करीब लेना चाहिए।

4. 14 से 18 साल की महिला को 2.4 UG के करीब लेना चाहिए।

5. 19 से 50 साल के पुरुष को 2.4 UG के करीब लेना चाहिए।

6. 19 से 50 साल की महिला को 2.4 UG के करीब लेना चाहिए।

7. गर्भवती महिला को 2.6 UG के करीब लेना चाहिए और स्तनपान कराने वाली महिला को 2.8 UG के करीब लेना चाहिए।

विटमिन  बी-12 हमारी कोशिकाओं में पाए जाने वाले जीन डीएनए को बनाने और उनकी मरम्मत में सहायता करता है। यह ब्रेन, स्पाइनल कॉर्ड  और न‌र्व्स  के कुछ तत्वों की रचना में भी सहायक होता है। हमारी लाल रक्त कोशिशओं  का निर्माण भी इसी से होता है। यह शरीर के सभी हिस्सों के लिए अलग-अलग तरह के प्रोटीन बनाने का भी काम करता है। 


 यह ऐसा विटामिन  है, जिसका अवशोषण हमारी आंतों में होता है। वहां लैक्टो-बैसिलस (फायदेमंद बैक्टीरिया) मौजूद होते हैं, जो बी-12 के अवशोषण में सहायक होते हैं। फिर यह  लिवर में जाकर स्टोर होता है। उसके बाद शरीर के जिन हिस्सों को इसकी जरूरत होती है, लिवर इसे वहां भेजने का काम करता जाता है।


थकान , डिप्रेशन , हाथ पैर सुन्न होना , साँस लेने में दिक्कत , याददाश्त में कमी , एकाग्रता में कमी , ह्रदय की असामान्य धड़कन , भूख में कमी , इनडाइजेशन आदि इसकी कमी से होते है


1. वेजटेरियन:-

शाकाहारी लोगों को अपने खानपान का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। उनके पास विटामिन बी-12 हासिल करने के स्रोत सीमित संख्या में होते हैं, इसलिए उन्हें दूध, दही, पनीर, चीज, मक्खन, सोया मिल्क या टोफू का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। बी-12 मुख्यत: मिट्टी में पाया जाता है। इसलिए यह जमीन के भीतर उगने वाली सब्जियों जैसे-आलू, गाजर मूली, शलजम, चुकंदर आदि में भी आंशिक रूप से पाया जाता है। इसके अलावा 45 मल्टीग्रेन ब्रेड और वे प्रोटीन पाउडर भी इसके अच्छे स्रोत हैं। यदि एक किलोग्राम आटे में 100 ग्राम वे प्रोटीन पाउडर मिला दिया जाए तो इससे व्यक्ति को विटामिन बी-12 का पोषण मिल जाता है।


2. नॉनवेज:-

नॉन-वेजटेरियन लोगों को अंडा, मछली, रेड मीट, चिकेन और सी फूड से विटामिन बी-12 भरपूर मात्रा में मिल जाता है, पर इनके ज्यादा सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ जाता है, जो नुकसानदेह साबित होता है। इसलिए नॉनवेज का सेवन सीमित और संतुलित मात्रा में करना चाहिए।

विटामिन- सी (एसकॉर्बिक एसिड)

विटामिन सी को एसकोरबिक-ऐसिड के नाम से भी जान जाता है। यह शरीर की कोशिकाओं को बांध के रखता है। इससे शरीर के विभिन्न अंग को आकार बनाने में मदद मिलता है। विटामिन सी गंधहीन तथा रंगहीन होता है।

1. प्रतिदिन एक औसत व्यक्ति को 80 मिलिग्राम विटामिन सी की आवश्यकता होती है।

2. सेब के रस से भी यह प्राप्त होता है, लेकिन इसे अलग तत्वों की मदद से भी ग्रहण किया जाता है।

3. अत्यधिक विटामिन सी भी हानिकारक हो सकता है। किसी भी स्थिति में एक दिन में विटामिन सी 1000 मिलिग्राम से अधिक नहीं ग्रहण करना चाहिए। इससे अधिक वह शरीर को हानि भी पहुंचा सकता है। 

4. शरीर में विटामिन सी की भूमिका एक संरक्षक की होती है। यह पोषक तत्व फ्री रेडिकल्स से हमारी कोशिकाओं का बचाव करता है व हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी व अन्य तरह के इन्फेक्शन होने का खतरा कम होता है। 

5. इतना ही नहीं, यह अनेक प्रकार के कैंसर से भी बचाव करता है। साथ ही, शरीर में विटामिन ई की सप्लाई को पुनर्जीवित करता है और आयरन के अवशोषण की क्षमता को भी बढ़ाता है। यह एक ऐंटि-एलर्जिक व ऐंटि-ऑक्सिडेंट के रूप भी काम करता है और दांत, मसूड़ों व आंखों को भी स्वस्थ रखने में भी मदद करता है।

6. विटामिन सी की कमी से मसूड़े और दांत कमजोर हो सकते हैं। इसकी कमी से आपको एनीमिया भी हो सकता हैं। विटामिन सी की कमी के कारण चेहरे पर झुर्रियां भी पड़ सकती हैं।

7. विटामिन सी सबसे ज्यादा खट्टे फलों जैसे की संतरा, मौसमी, अमरुद, निम्बू, स्ट्रॉबेरी, टमाटर आदि में होता हैं। इसके अलावा ब्रोकोली, गोभी, अंकुरित अनाज, पालक, आंवला आदि में भी पाया जाता हैं। विटामिन सी सबसे ज्यादा खट्टे-फलों में भी उपस्तिथ होता हैं।

विटामिन- डी (केल्सिफेरोल)

विटामिन डी का आविष्कार विड्स ने 1932 में किया था विटामिन ए की भांति विटामिन डी भी तेल और वसा में घुल जाता है पर पानी में नहीं घुलता। जिन पदार्थो में विटामिन ए रहता है विशेषकर उन्हीं में विटामिन डी भी विद्यमान रहता है। मछली के तेल में विटामिन डी अधिक पाया जाता है।

1. जन्म से 12 महीने: 400 आइयू (इंटरनेशनल यूनिट)

2. बच्चे 1 – 13 साल: 600 आइयू

3. किशोर 14-18 वर्ष: 600 आइयू

4. वयस्क 19 – 70 साल: 600 आइयू

5. वयस्क 71 साल और उससे बढ़े: 800 IU

6. गर्भवती और स्तनपान करने वाली महिला: 600 आइयू

यह शरीर में कैल्शियम लेवल को कण्ट्रोल में रखता हैं। जिससे नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली और हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती हैं। यह बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करता हैं।

विटामिन डी की कमी से आपके मसल्स कमजोर हो जाते हैं, जोड़ो में दर्द होता हैं, मोर्निंग सिकनेस, शारीरिक कमजोरी भी हो जाती हैं।

इसका सबसे अच्छा स्रोत सूरज की रौशनी है। पर्याप्त विटामिन-D  प्राप्त करने के लिए धूप की आवश्यकता होती है यह दूध , मशरूम , अंडा , कोड लिवर ओइल , सोया मिल्क , पनीर , टोफू , मक्खन आदि से भी प्राप्त होता है।

विटामिन- ई (टेकोफेरोल)

विटामिन ई वसा में घुलनशील होता है और विटामिन ई को टेकोफेरोल भी कहा जाता है।


1. विटामिन- ई शरीर के वजन के आधार पर लागू करें - प्रति किलो 0.2-0.3 मिलीग्राम।

2. एक वयस्क के लिए औसत दर प्रति दिन 10-12 मिलीग्राम है।


यह त्वचा को जवां बनाये रखता हैं। स्त्री-पुरुषो की कमजोरी को दूर करता हैं। शरीर को जल्दी बुढा नही होने देता हैं। इससे स्किन सेल्स रिपेयर होते हैं, यह आँखों के लिए फायदेमंद होता हैं। कोलेस्ट्रॉल को कण्ट्रोल में रखता हैं।


इसकी कमी से चेहरे पर मुहांसे आदि होते हैं। स्त्री और पुरुषो दोनों में बांझपन की समस्या हो सकती हैं। स्किन पर बुढ़ापा जल्दी आने लगता हैं।


विटामिन ई सूरजमुखी के बीज, बादाम, आम, हरी मिर्च, एवोकाडो, कीवी, टमाटर, ब्रोकोली, पालक आदि में भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं।

विटामिन- के (फिलोक्विनों)

विटामिन K वसा में विलेय विटामिन हैं जो मानव द्वारा कुछ प्रकार के प्रोटीनों का संश्लेषण करने के लिये जरूरी होता है। शरीर में कहीं से भी होने वाले रक्तस्राव को रोकने की इसमें अदभुत क्षमता होती है। इसकी कमी से शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

1. 0 – 6 महीने: 2.0 माइक्रोग्राम प्रति दिन (मिलीग्राम/दिन)

2. 7 – 12 महीने: 2.5 मिलीग्राम/दिन

3. 1-3 वर्ष: 30 मिलीग्राम/दिन

4. 4-8 साल: 55 मिलीग्राम/दिन

5. 9-13 साल: 60 मिलीग्राम/दिन

6. पुरुषों और महिला उम्र 14-18: 75 मिलीग्राम/दिन

7. पुरुषों और महिला उम्र 19 वर्ष और उससे बड़े : 90 मिलीग्राम/दिन.

विटामिन के एक वसा में घुलनशील विटामिन है। इसका नाम, जर्मन शब्द koagulation (रक्त के थक्के जमना) के नाम पर है। यह विटामिन, रक्त के थक्के जमाने blood clotting में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके बिना रक्त के थक्के नहीं बन पाते। अध्ययन यह भी दिखाते हैं, यह मजबूत हड्डियों को बनाए रखने और ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में भी मदद करता है।

विटामिन k की कमी से रक्त धमनियाँ सख़्त, हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। विटामिन k की कमी से रक्त स्राव की समस्या हो सकती है जैसे मासिक धर्म , मसूड़ों से व नाक से रक्त आना आदि। आंखों की समस्या भी हो सकती है।


विटामिन- k(के) पौधों में पाया जाता है। हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन इस विटामिन पाने को पाने का सबसे अच्छा तरीका है। यह हरी पत्तेदार सब्जियों, गोभी, पालक, शलजम साग, स्विस चार्ड, सरसों का साग, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, ब्रोकोली आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पौधों में पाया जाने वाला क्लोरोफिल उन्हें हरा रंग देता है और विटामिन K प्रदान करता है। कम मात्रा में विटामिन K मछली, जिगर, मांस, अंडे, और अनाज में मिलता है।




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