एसिडिटी

                                       एसिडिटी


 हमारे शरीर में तीन दोष हैं वात, पित्त और कफ। इनमें संतुलन रहता है तो शरीर सामान्य स्थिति में रहता है। जब शरीर की जठराग्नि में विकृति आ जाती है तो गैस या एसिडिटी की समस्या पैदा होती है। आयुर्वेद में एसिडिटी की कई स्थितियां हैं। इन्हें समझ लें तो इनका उपचार भी काफी आसान है


उध्र्वग अधोग स्थिति: 

इसमें य्रूडम और अमाशय के बीच गैस बनती है। इस स्थिति में कफ का अनुबंध होता है, जिसमें मिचली आना, खट्टे डकार, छाती में जलन, भोजन में अरुचि आदि की समस्या महसूस होती है। यह उन लोगों को ज्यादा परेशान करती है, जो दूध से बनी चीजों, मीट-मछली आदि का ज्यादा सेवन करते हैं। ये वर्षा ऋतु है। इस मौसम में नई फसल से बना भोजन खाने से अम्ल की आशंका बढ़ जाती है। इस तरह के रोगी के गले में जलन होती है, वे बेचैन रहते हैं। इन्हें खट्टा डकार होता है। भोजन में अरुचि रहती है, उन्हें चकत्ते हो सकते हैं, बुखार भी हो सकता है।


क्या करें:

ऐसे लोगों को गिलोय के तने का दो चम्मच रस, आंवले का एक चम्मच रस, दोपहर में कागजी नींबू का शरबत, मिस्री के साथ मुनक्का मिलाकर खाने, नारियल का पानी पीने, रात में शहद के साथ छोटा चम्मच त्रिफला खाने से काफी लाभ होता है। अम्ल पित्त का रोगी अगर सुबह शाम एक-एक चम्मच अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन गुनगुने पानी के साथ करे तो भी काफी लाभ होता है। पुराने अनाज से बना भोजन करना चाहिए। उनके लिए मूंग की दाल अमृमतुल्य है। परवल, करेला, पालक, बथुआ आदि पित्त रस वाले पदार्थ भी अम्ल पित्त में काफी लाभकारी हैं। अगर आप इस समस्या से परेशान हैं तो गाय का दूध, ताजा मक्खन, धनिया, पके हुए केले आदि खाना चाहिए।


अधोग स्थिति: 

यह स्थिति छोटी अमाशय और बड़ी अमाशय के बीच होती है। इसमें दस्त, पेट में जलन, पतले दस्त का आना, मल त्यागने में गुदा प्रदेश में जलन महसूस होता है। इसमें पित्त और वायु बढ़ जाते हैं। ऐसा बरसात में पेय पदार्थ का ज्यादा सेवन करने से भी हो सकता है या खट्टे पदार्थ का ज्यादा सेवन भी कारण बन सकता है।


क्या करें: 

ऐसे लोगों को उड़द की दाल, बैंगन, तिल के तेल से बनी चीजें, गरिष्ठ भोजन, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। अगर इस समस्या से परेशान हैं तो बेल का शरबत, नारियल पानी, चिरायता आदि का इस्तेमाल करें, पूरा लाभ होगा।


उध्र्वग-अधोग स्थिति: इसमें दोनों के मिले-जुले लक्षण होते हैं। इसमें मल का रंग काला होता है। जो लोग खाना खाने के काफी देर बाद सोते हैं, उनका पित्त विकृत हो जाता है।


क्या करें: 

इसमें परवल के व्यंजन, कुटकी, चिरायता का काढ़ा, गिलोय के रस का सेवन करना चाहिए। उन्हें गुलकंद, सेब और बेल का मुरब्बा खाना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए अदरक और सौंठ, कागजी नींबू, नारियल का पानी लाभकारी है।


दफ्तर में लगातार बैठकर काम करते हैं तो

जो लोग लगातार बैठकर काम करते हैं उनके पेट और छाती में जलन पैदा होती है। इससे शरीर में भारीपन, नींद, चकत्ते आना आदि की समस्या होती है। इससे शुरुआत में खांसी होती है। इसके बाद रोग शुरू होता है। इसके रोगियों को थोड़ी-थोड़ी देर में पानी पीते रहना चाहिए। नारियल पानी बेहतर पेय है। उनके लिए पेठे की मिठाई अमृततुल्य है। कभी-कभी गुलकंद, मुनक्का का भी सेवन कर लेना चाहिए। इन्हें टमाटर, चावल, चाय, सिगरेट आदि से बचना चाहिए। खाने में उड़द की दाल, राजमा आदि चावल के साथ न लें। राजमा का सेवन रोटी के साथ कर सकते हैं।


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